Tuesday, April 16, 2019

काफल पाको, मैंल नी चाखो - Emotional story

गर्मियां शुरू होते ही उत्तराखंड के पहाड़  मौसमी फलों से लदना शुरू हो जाते है। काफल भी उन्हीं मौसमी
फलों में से एक फल है। स्वाद में बेसुमार लाल चटक रंग के ये फल रसदार होने के कारण स्थानीय लोगों और पर्यटकों को बहुत लुभाते है। साथ में यह एक ऐसा फल है जिसे प्रकृति की दैन कहा जाता है , कई गाँव के लोगों के लिए यह फल रोजगार का एक साधन भी बन जाता  है।

इसी फल से जुड़ी काफी पुरानी एक कथा है जो उत्तराखंड में खासी लोक प्रिय है।


बहुत समय पहले की बात है सुदूर गाँव में एक औरत और उसकी बेटी रहती थी। दोनों एक दूसरे का एक मात्र
सहारा थी। माँ जैसे तैसे घर का गुज़ारा किया करती थी। ऐसे में गर्मियों के मौसम में जब पेड़ो पर काफल आया करते थे तो वह उन काफलों को तोड़कर बाजार में बेचा करती थी। जिससे उनका गुज़ारा चलता था। उस समय पहाड़ो पर काफल रोजगार का साधन हुआ करता था।

जो आज भी देखा जा सकता है। एक दिन जब वह जंगल से काफलतोड़कर लायी तो बेटी का मन उन काफलों को खाने का करने लगा और उसका मन उन लाल रसीले काफलों की ओर आकर्षित हुआ तो उसने माँ से उन्हें
चखने की इच्छा जाहिर की लेकिन माँ ने उन्हें बेचने का कह कर उसे काफलों को छूने से भी मना कर दिया और काफलों की छापरी (टोकरी) बाहर आंगन में एक कोने में रख कर खेतों में काम करने चली गई और बेटी से काफलों का ध्यान रखने को कह गई।

दिन में जब धूप ज्यादा चढ़ने लगी तो काफल धूप में सूख कर कम होने लगे। क्युकी काफलों में पानी की मात्रा ज्यादा होती है जिससे वह धुप में सुख से जाते है और ठण्ड में फिर से फुल जाते है।  माँ जब घर पहुंची तो बेटी सोई हुई थी।
माँ सुस्ताने (थकान दूर करने ) के लिए बैठी तो उसे काफलों की याद आयी उसने आँगन में रखी काफलों की छापरि (टोकरी) देखी तो उसे काफल कम लगे। गर्मी में काम करके और भूख से परेशान वह पहले
ही चिड़चिड़ी (गुस्सा) हुई बैठी थी कि काफल कम दिखने पर उसे और ज्यादा गुस्सा आ गया।


उसने बेटी को उठाया और गुस्से में पूछा कि काफल कम कैसे हुए? तूने खादिए ना? इस पर बेटी बोली - “नहीं मां, मैंने तो चखे भी नहीं! पर माँ ने उसकी एक नहीं सुनी, माँ का गुस्सा बहुत बढ़ गया और उसने बेटी की
खूब पिटाई शुरू कर दी।
बेटी रोते-रोते कहती गई की मैंने नहीं चखे, पर माँ ने उसकी एक नहीं सुनी और लगातार मारते गई जिससे बेटी अधमरी सी हो गई और अंतः मारते मारते एक वार बेटी के सर पर दे मारा जिससे छटककर आँगन में गिर पड़ी और उसका सर पत्थर में लगा जिससे उसकी वही मृत्यु हो गई।

धीरे धीरे जब माँ का गुस्सा शांत हुआ तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, उसने बेटी को गोद में
उठा कर माफ़ी मांगनी चाही, उसे खूब सहलाया, सीने से लगाया लेकिन तब तक बहुत देर  हो चुकी थी, बेटी के प्राण जा चुके थे , माँ तिलमिला उठी और छाती पीटने लगी कि उसने यह क्या कर दिया। उसका वह एक मात्र सहारा थी। छोटी सी बात के लिए उसने अपनी बेटी की जान ले ली।

जब माँ को ये एहसास हुआ की काफल धूप में सुखकर कम हो गए थे  तो उसे अपनी गलती का काफी पश्चाताप हुआ। पर अब इतनी देर हो चुकी थी की वह पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी। और इस पश्चाताप में उसने अपने भी प्राण ले लिए।


कहा जाता है कि वे दोनों माँ बेटी मर के पक्षी बन गए और जब भी पहाड़ो में काफल पकते हैं तो एक पक्षी बड़े करुण भावसे गाता है - 'काफल पाको! मैंल नी चाखो!' (काफल पके हैं, पर मैंने नहीं चखे हैं) और
तभी दूसरा पक्षी चीत्कारकर उठता है पुर पुतई पूर पूर! (पूरे हैं बेटी पूरे हैं)

दोस्तों आपको यह स्टोरी कैसी लगी हमे जरूर मैसेज करके बताये ।

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